आज जंजीबार लौंग का सबसे अधिक उत्पादन करने वाला देश है। लौंग का अधिक मात्रा में उत्पादन जंजीबार और मलाक्का द्वीप में होता है। इसका उपयोग भारत और चीन में 2000 वर्षों से भी अधिक समय से हो रहा है।
लौंग का उत्पादन मुख्य रूप से इंडोनेशिया, मेडागास्कर, भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका आदि देशों में होता है। आपको शायद यह जानकर आश्चर्य हो कि अठारहवीं शताब्दी में ब्रिटेन में लौंग का मूल्य उसके वजन के सोने के बराबर हुआ करता था।
लौंग मध्यम आकार का सदाबहार वृक्ष से पाया जाने वाला, सूखा, अनखुला एक ऐसा पुष्प अंकुर होता है जिसके वृक्ष का तना सीधा और पेड़ भी 10-12 मीटर की ऊँचाई वाला होता है और जिसके पत्ते बड़े-बड़े तथा दीर्घवृताकार होते हैं। इसके पेड़ को लगाने के आठ या नौ वर्ष के बाद ही फल देते है। लौंग के पेड़ों के शाखों के अन्तिम छोरों में लौंग के फूल समूह में खिलते हैं। लौंग की कलियों का रंग खिलना आरम्भ होते समय पीला होता है जो कि धीरे-धीरे हरा होते जाता है और पूर्णतः खिल जाने पर इसका रंग लाल हो जाता है। इन कलियों में चार पँखुड़ियों के मध्य एक वृताकार फल होता है।
लौंग, जिसे कि लवांग के नाम से भी जाना जाता है, Myrtaceae परिवार से सम्बन्धित एक पेड़ की सूखी कली को कहते हैं जो कि खुशबूदार होता है। लौंग उष्ण प्रकृति का मसाला है। लौंग दो प्रकार के होते हैं। एक काले रंग की एवं दूसरी नीले रंग की। आमतौर पर घरों में मसाले के तौर पर इस्तेमाल होने वाला लौंग काले रंग का होता है। नीले रंग का लौंग अधिक तैलीय होता है अत: इनसे मशीन द्वारा तेल निकाला जाता है जिनका उपयोग चिकित्सा में किया जाता है। इसके पत्ते भी मसाले के तौर पर इस्तेमाल किये जाते हैं। लवंग एक खुशबूदार मसाला होता है।
अच्छे लौंग की पहचान है उसकी खुशबू एवं तैलीयपन। लौंग ख़रीदते समय उसे दातों में दबाकर देखना चाहिए इससे लवंग की गुणवत्ता पता चल जाती है। जो लौंग सुगन्ध में तेज, स्वाद में तीखी हो और दबाने में तेल का आभास हो उसी लौंग को अच्छा मानना चाहिए। व्यापारी लौंग में तेल निकाला हुआ लौंग मिला देते है। अगर लौंग में झुर्रिया पड़ी हो तो समझे कि यह तेल निकाली हुई लौंग है।
लौंग में मौजूद तत्वों का विश्लेषण किया जाए तो इसमें कार्बोहाइड्रेट, नमी, प्रोटीन, वाष्पशील तेल, गैर-वाष्पशील ईथर निचोड़ (वसा) और रेशों से बना होता है। इसके अलावा खनिज पदार्थ, हाइड्रोक्लोरिक एसिड में न घुलने वाली राख, कैल्शियम, फास्फोरस, लोहा, सोडियम, पोटेशियम, थायामाइन, राइबोफ्लेविन, नियासिन, विटामिन ‘सी’ और ‘ए’ जैसे तत्व भी लौंग में प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। इसके अलावा कई तरह के औषधीय तत्व होते हैं। इसका ऊष्मीय मान 43 डिग्री है और इससे कई तरह के औषधीय व भौतिक तत्व लिए जा सकते हैं।
आयुर्वेद में लौंग का प्रयोग अनेक प्रकार की आयुर्वेदिक औषधियों के बनाने में भी किया जाता है। भारत के प्राचीन चिकित्सा विज्ञान में लौंग का उपयोग चिकित्सा के लिए किये जाने का ज़िक्र हुआ है। चीन के साथ ही साथ पश्चिम के अनेक देशों में हर्बल दवाइयाँ बनाने के लिए लौंग का प्रयोग किया जाता है। भारतीय औषधीय प्रणाली में लौंग का उपयोग कई स्थितियों में किया जाता है। अनेक रोगों के निदान के लिए आयुर्वेद में लौंग का प्रयोग साबुत, पीसकर, चूर्ण, काढ़ा तथा तेल के रूप में किया जाता है। लौंग का तेल एक महत्त्वपूर्ण आयुर्वेदिक औषधि है। लौंग के तेल को औषधि के रूप में भी उपयोग में लाया जाता है। लौंग के तेल में भी ऐसे अंश होते हैं जो रक्त परिसंचरण को स्थिर करते हैं और शरीर के तापमान को नियंत्रित रखते हैं। लौंग के तेल को बाहरी त्वचा पर लगाने से त्वचा पर उत्तेजक प्रभाव दिखाई देते हैं। त्वचा लाल हो जाती है और उष्मा उत्पन्न होती है। इसके अलावा लौंग एंजाइम के बहाव को बढ़ावा देती है भूख बढ़ाती है और पाचन क्रिया को भी तेज करती है। लौंग का तेल पानी की तुलना में भारी होता है। इसका रंग लाल होता है। सिगरेट की तम्बाकू को सुगन्धित बनाने के लिए लौंग के तेल का उपयोग होता है। इसके तेल को त्वचा पर लगाने से त्वचा के कीड़े नष्ट होते हैं।
लौंग में अनेक प्रकार के औषधीय गुण होते हैं। आयुर्वेदिक मतानुसार लौंग तीखा, लघु, आंखों के लिए लाभकारी, शीतल, पाचनशक्तिवर्द्धक, पाचक और रुचिकारक होता है। यह प्यास, हिचकी, खांसी, रक्तविकार, टी.बी आदि रोगों को दूर करती है। लौंग का उपयोग मुंह से लार का अधिक आना, दर्द और विभिन्न रोगों में किया जाता है। यह दांतों के दर्द में भी लाभकारी है। ये उत्तेजना देते हैं और ऐंठनयुक्त अव्यवस्थाओं, तथा पेट फूलने की स्थिति को कम करते हैं। धीमे परिसंचरण को तेज करती है और हाजमा तथा चयापचय को बढ़ावा देती है। शोधकर्ताओं का कहना है कि भारतीय मसालों में लौंग सबसे अच्छा एंटी ऑक्सीडेंट का काम करता है। भोजन में प्राकृतिक एंटी ऑक्सीडेंट का इस्तेमाल करना स्वास्थ के लिए बेहतर है। यह कृत्रिम एंटी ऑक्सीडेंट से ज्यादा बेहतर है। एंटीसेप्टिक गुणों के कारण यह चोट, घाव, खुजली और संक्रमण में कीटों के काटने या डंक मारने पर भी किया जाता है। यूनानी चिकित्सा पद्धति के अनुसार : लौंग खुश्क, उत्तेजक और गर्म है। इसको खाने से सिर दर्द होता है। यह पाचनशक्ति को बढ़ाता है। दांतों के मसूढ़ों को मज़बूत बनाता है। इसको पीसकर मालिश करने से ज़हर दूर होता है। ईरान और चीन में तो ऐसा भी माना जाता था कि लौंग में कामोत्तेजक गुण होते हैं।
दुनिया भर के व्यंजनों को बनाने में प्रायः लौंग का प्रयोग एक मसाले के रूप में किया जाता है। मसाले के तौर पर लौंग का इस्तेमाल गरम मसाला में होता है। चूँकि लौंग के प्रयोग से भोजन सुस्वादु हो जाता है, सम्पूर्ण भारत में प्रायः लौंग का प्रयोग विभिन्न प्रकार के व्यंजन बनाने में होता है। रसोईघर में लौंग को पीसकर रसदार सब्जियों में इस्तेमाल किया जाता है। आजकल बहुत सी मिठाईयों को सजाने के लिए भी लौंग का प्रयोग किया जाने लगा है। कोको, चॉकलेट, आइसक्रीम आदि खाद्य-पदार्थों में पाया जाने वाला बनावटी वेनीला एसेन्स लौंग से ही तैयार किया जाता है। लौंग को पान के साथ भी खाया जाता है, प्रायः पान के बीड़े में लौंग को खोंस दिया जाता है जिससे बीड़े की सुन्दरता भी बढ़ जाती है। भारत के कुछ क्षेत्रों में बिना लौंग वाला पान बीड़ा देने को अशुभ माना जाता है। लौंग की तासीर गर्म होने के कारण गर्मियों के दिनों में इसका प्रयोग कम किया जाता है। मसाला चाय बनाने के लिए भी लौंग का इस्तेमाल किया जाता है। लौंग का आसव बनाकर उसमें से सुगन्धित पदार्थ तैयार किये जाते हैं। चीन और जापान में भी एक खुशबूदार पदार्थ के रूप में लौंग को महत्त्वपूर्ण माना जाता है। यूरोप, एशिया और संयुक्त राज्य अमेरिका के कई क्षेत्रों में लौंग का प्रयोग एक प्रकार के सिगरेट, जिसे कि क्रिटेक (kretek) कहा जाता है, बनाने के लिए भी किया जाता है।
एंटीसेप्टिक गुणों के कारण यह चोट, घाव, खुजली और संक्रमण में भी काफ़ी उपयोगी होता है। इसका उपयोग कीटों के काटने या डंक मारने पर भी किया जाता है। लेकिन संवेदनशील त्वचा पर इसे नहीं लगाना चाहिए।
नासूर – लौंग और हल्दी पीस कर लगाने से नासूर मिटता है।
लौंग के तेल को त्वचा पर लगाने से सर्दी, फ्लू और पैरों में होने वाल फंगल इन्फेक्शन और त्वचा के कीड़े भी नष्ट होते हैं।
आंखों के पास या चेहरे पर निकली छोटी-छोटी फुंसियों पर लौंग घिस कर लगाने से फुंसियाँ और सूजन भी ठीक हो जाती हैं।
एक लौंग पीस कर गर्म पानी से फंकी लें। दो तीन बार लेने से ही सामान्य बुखार उतर जाएगा। चार लौंग पाउडर पानी में घोल कर पिलाने में तेज बुखार भी कम हो जाता है।
लौंग के तेल को तिल के तेल (सेसमी आयल) के साथ मिलाकर डालने से कान के दर्द में राहत मिलती है।
लौंग मानसिक दबाव और थकान को कम करने का काम करता है। यह अनिद्रा के मरीजों और मानसिक बीमारियों जैसे कम होती याददाश्त, अवसाद और तनाव में उपयोगी होता है।
लौंग का तेल ख़ून को साफ़ करके ब्लड शुगर को नियंत्रित करता है। लौंग का तेल रक्त संचार सामान्य और शरीर का तापमान नियंत्रित रखता हैं।
लौंग की कुछ कलियों को सरसों तेल / कपूर के तेल में पकाकर मालिश करने से लाभ मिलता है। सूजन होने पर लौंग के तेल से मालिश करनी चाहिए। मांस पेशियों में ऐंठन हो तो प्रभावित क्षेत्र पर लौंग के तेल की मालिस करने से आराम मिलता है।
मिश्री एवं लौंग को पीसकर खाने से जल्दी प्यास नहीं लगती है। प्यास की तीव्रता होने पर उबलते पानी में लौंग डाल कर पिलाएँ। इससे प्यास कम हो जाती है।
लौंग को गर्म पानी में भिगोकर उसका पानी पिलाने से लाभ होता है। यदि भुने हुए लौंग के चूर्ण को शहद के साथ मिलाकर ले लिया जाए तो उल्टियों पर काबू पाया जा सकता है क्योंकि लौंग के संज्ञाहारी प्रभाव से पेट और हलक सुन्न हो जाते हैं और उल्टियाँ रुक जाती हैं।
चार लौंग कूट कर एक कप पानी में डाल कर उबालें। आधा पानी रहने पर छान कर स्वाद के अनुसार मीठा मिला कर पी कर करवट लेकर सो जाएँ। दिन भर में ऐसी चार मात्रा लें। उल्टियाँ बंद हो जाएँगी।
खसरा निकलने पर दो लौंग को घिसकर शहद के साथ लेने से खसरा ठीक हो जाता है।
यह पेट के दर्द को मिटाने वाला माना जाता है। लौंग पाचन क्रिया को दुरुस्त रखता है।
खाना खाने के बाद 1-1 लौंग सुबह, शाम खाने से या शर्बत में लेने से अम्लपित्त से होने वाले सभी रोगों में लाभ होता है और अम्लपित्त ठीक हो जाता है। 15 ग्राम हरे आँवलों का रस, पाँच पिसी हुई लौंग, एक चम्मच शहद और एक चम्मच चीनी मिलाकर रोगी को पिलाएँ। ऐसी तीन मात्रा सुबह, दोपहर, रात को सोते समय पिलाएँ। कुछ ही दिनों में आशातीत लाभ होगा।
दो लौंग पीस कर उबलते हुए आधा कप पानी में डालें, फिर कुछ ठंडा होने पर पी जाएँ। इस प्रकार तीन बार नित्य करें।
2 लौंग पीस कर आधा कप पानी में मिला कर गर्म करके पिलाने से जी मिचलाना ठीक हो जाता है। लौंग चबाने से भी जी मिचलाना ठीक हो जाता है।